"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमन्ते देवता:", ढोर गवार शूद्र पशु आरू नारी ये सब ताड़न के अधिकारी- दोनों ही बातों में नारी के प्रति समाज का व्यवहार कैसा होना चाहिए बताया गया है | मेरी दृष्टि में नारी के प्रति हमारा व्यवहार न तो पूज्यनीय होना चाहिए ओर न हीं ताड़न वाला | वास्तव में नारी के प्रति हमारा व्यवहार इंसानियत का होना चाहिए | आख़िर नारी भी इंसान है उसे समकक्ष होने के दर्जे की आवश्यकता है |
हमारे देश में आम तौर एक रवैया पर प्रचलित है, जिसकी बात को आप तरजीह नहीं देना चाहते उसे या तो ताड़ कर अपने से दूर कर दइया जाता है या नही तो, देवता की मानिंद किसी मंदिर में स्थापित कर उसे अपने जीवन से बाहर कर दिया जाता है | ज़रा अपने आसपास होने वाले आपसी व्यवहार को ध्यान से जांचिए | हम माता-पिता को पूज्यनीय कहकर अपने जीवन से उन्हें अलग कर देते हैं | एक उदहारण और - अपने नाम के आगे गाँधी शब्द जोड़ कर एक परिवार ने पूरे देश पर अपना राज चला रखा है | उनसे पूछो तो सही कि गाँधी जी को उन्होंने देखा भी है । खैर नहीं देखा तो कोई बात नहीं पर वे महात्मा गाँधी के सिद्धांतों को कितना मानते हैं |
व्यावहारिकता में पूज्यनीय उसे ही बनाया जाता हैं जिसे हम अपने विचारों से ताड़ना चाहते हैं | मेरी इस बात का एक प्रमाण है वो ये कि हमारे यहाँ हज़ारों महापुरुष हुए हैं हमने उनमें से कितनों की बात मानी ? हमने हर महापुरुष को चौराहों पर मूर्ति बना कर खड़ा कर दिया | और तो और महापुरुषों को आपस में बाँट कर राजनीति भी कर ली | इसीलिए कहता हूँ की नारी को पूज्यनीय बना कर जीवन की मुख्य धारा से उसे अलग मत करिए ये भी एक प्रकार से उसे ताड़ना ही है | नारी को अपने समकक्ष रखने की आवश्यकता है | धन्यवाद |
Priyadarshan Shastri
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