युवराज, अन्नदाता, हुकुम आदि शब्दो. का प्रयोग करना आज भी हमारी उसी सामंती युग की गुलामियत का प्रदर्शन है चाहे पीढ़ीयाँ बदल गई है | सामन्ती युग में ये भले ही आदर सूचक शब्द थे परंतु उस आदर के पीछे शक्तिसंपन्न की पूजा करना बल्कि डर की भावना से उसकी चापलूसी करना अधिक होता था ताकि वह किसी कमजोर को कोई नुकसान न पहुँचाए | चाहे हम लोकतंत्र में जी रहे हैं परंतु भावना आज भी हमारी वो ही है | लोकतंत्रात्मक पद्धति से चुने गये जान प्रतिनिधि में हम उसी राजा को ढूँढते हैं जो आएगा और जान कल्याण कर जाएगा | अन्ना हज़ारे सही कहते है जनप्रतिनिधि जनता के नौकर हैं, ये बात जनता को समझनी पड़ेगी | जिस दिन हमारी भावना बदल जाएगी उस दिन इन शब्दों का कोई मोल नहीं रहेगा | तब हम असली लोकतन्त्र का मज़ा लेंगे |
- प्रियदर्शन शास्त्री
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