'हम भी अगर बच्चे होते, नाम हमारा होता बबलू टब्लू, खाने को मिलते लड्डू' ये लाइन पुराने प्रसिद्ध गीत की है जिसे रफ़ी साहब ने गाया था | काश हम बड़े न हुए होते | छोटे ही रहते तो बहुत कुछ मिल रहा होता | माँ की गोद, मस्ती भरा जीवन, स्कूल का बस्ता, लारी की कुल्फि, गली में खेलना, देर से घर आना, पिता का डांटना, माँ का समझाना, दोबारा ऐसे न करने की कसमें खाना, और फिर दिन का अंत | यही सब कुछ कहानी है बचपन की | इस कहानी में न राग है न द्वेष है, न छल
है न कपट है बस है तो एक निश्चिंत, मस्ती भरा कोरा जीवन | फिर हम बड़े हो गये | वही सब कुछ लिख दिया गया जिसे पढ़ कर हमारे मन से अचानक उक्त गीत की पंक्तियाँ निकल पड़ी |
आज बाल दिवस है, पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन | बाल दिवस मात्र बालकों के लिए ही नहीं है बल्कि बड़ों के लिए भी है अपने बीते बचपन को याद करने के लिए | आईये कुछ पल बचपन की याद में खो जाएँ |
-प्रियदर्शन शास्त्री
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