कर दी ना आख़िर 'बबलुपने' की बात | अरे भाई भीख माँगने वाली बात तो समझ में आई परंतु 'मज़दूरी' करना तो कोई ग़लत कार्य नहीं है | खैर उनका क्या दोष | दोष तो उनकी सात पुश्तों का है जहाँ कभी किसी ने भिखारी तो दूर किसी मजदूर तक के दिगदर्शन नहीं किए | हम तो हमारी माताजी को धन्यवाद देते हैं कि बचपन में द्वार पर आए भिखारी को एक कटोरी आटे की वे हम से ही दिलवाती थी ताकि हमें पढ़ाई-लिखाई न करने का दुष्परिणाम पता चल जाए | बात कहाँ से कहाँ चली गई | हम हमारी सत्ताधारी पार्टी के युवराज राहुल बाबा की बात कर रहे थे | दूर- दूर तक किसी भी राजनीतिक दल में उनके जैसा राजकुमार हमें तो आज की तारीख में नज़र नहीं आता | बिल्कुल स्टार टेलीविज़न पर दिखाए जा रहे सीरियल 'रिश्ता क्या कहलाता है' के नैतिक जी की तरह, सीधे सादे | खैर प्राचीन समय में बसंत ऋतु में 'युवराज' अक्सर जंगलों की खूबसूरत वादियों में अपनी सेना के साथ घूमने चले जाया करते थे, ऐसा हमने कहानियों में पढ़ा है | अब कोई बसंत ऋतु तो बची नहीं उसकी जगह हमारे युवराज चुनावी ऋतु में अपने 'वफ़ादार' सिपाहियों के साथ उत्तर दिशा की ओर पड़ने वाले जंगल की ओर चले गये | वहाँ जा कर देखा तो जंगल तो था पर उस जगह एक 'प्रदेश' बस गया था | पता चला वहाँ किसी सुंदर राजकुमारी का राज है | उस राजकुमारी ने अभी तक भी विवाह नहीं किया था | हाथी उस राजकुमारी की कमज़ोरी है | असली हाथी की कमी को देखते हुए उसने अपने राज में जगह जगह हाथी के बुत ढेरों की संख्या में खड़े करवा दिए हैं | परंतु हमारे राजकुमार को न तो राजकुमारी की सुंदरता पसंद आई न ही उनके हाथी के बुत | उनको तो वहाँ के युवाओं की दशा पर तरस आ गया | किसी साधु संत की तरह हाथ सामने कर आशीर्वाद दे डाला कि अब उन्हें कहीं मज़दूरी या भीख माँगने नहीं जाना पड़ेगा | खैर बात काफ़ी लंबी हो गई | हमने उनके एक वफ़ादार सैनिक से युवराज के आने का असली कारण जान ही लिया | दर असल वे भी वहाँ वोट की भीख माँगने ही गये हैं चिंता करने की कोई बात नहीं | धन्यवाद |
-प्रियदर्शन शास्त्री
very good
ReplyDeleteReally the true fact is that Rahul Gandhi is not much broad minded poltician as much a politician should be. Actually now a days generation have become more wise to understand the motto behind the Rahul's statement.
ReplyDelete