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Monday, September 19, 2011

Clothing

            मानव द्वारा कपड़े पहनने की दो वजह है एक तो तन ढकने के लिए, दूसरी अवसर विशेष के लिए . दोनों बातो में बहुत बड़ा अंतर है. आईये इसके पीछे के पहलू को देखते हैं. आरम्भिक अवस्था में मानव बिना कुछ पहने रहता था. धीरे धीरे उसे तन ढकने की आवश्यकता महसूस हुई. इसी आवश्यकता ने कपड़ो का अविष्कार किया. आज हम ब्रांडेड परिधानों के दौर में जीवित हैं. कपड़े पहनने के तोर तरीके से जीवन का दर्शन एवं संस्कृति दोनों झलकती है. यहीं से 'पहनावे' का जन्म हुआ. कपड़ों को विशेष डिज़ाइन में ढाल कर पहनना पहनावा होता है.
            बात हम कपड़े पहनने की कर रहे हैं. पहली वजह है तन ढकने की. तन को कैसे और कितना ढकना है यह आपकी आवश्यकता पर निर्भर करेगा. मेरी राय में पहली वजह के पीछे व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता निहित है. दूसरे शब्दों में तन को ढकने के उद्देश्य से परिधान का चयन करना, व्यक्तिगत पसंदगी एवं इच्छा का विषय है. जो समय एवं परिस्थिति अनुसार परिवर्तनीय है. यहाँ समय एक महत्वपूर्ण पहलू है. उदहारण के लिए यदि आपका समय व्यक्तिगत  कार्य का है, कार्य कुछ भी हो, तो आप क्या पहनेगे यह आपकी इच्छा पर निर्भर करेगा, तब आपका एकमात्र उद्देश्य तन को ढकने से होता है. स्थान कौनसा है यह महत्वपूर्ण नहीं है. ऐसे वक्त में आपके शारीर पर कितने कपड़े हैं और कैसे हैं, यह दूसरों के द्वारा देखना भी आपकी प्राइवेसी में ताकझांक करना है जो असभ्यता  कहलाती है. यह सोच मैंने पाश्चात्य देशों के लोगों में देखी है.
            अब दूसरी वजह पर निगाह डालेंगे. इसमें अवसर विशेष के अनुसार कपडे धारण करना है. अवसर  विशेष से तात्पर्य तीज-त्यौहार से नहीं है. यहाँ मेरा अभिप्राय उस समय विशेष से है जो आपके व्यक्तिगत समय के समाप्त होने पर आरम्भ होता है. जब भी आप अपने व्यक्तिगत समय से बाहर निकलते हैं तब आप जिस किसी भी कार्य में संलग्न होंगे, ऐसा कार्य बाह्य समाज के लिए होगा. बस यहीं से मेरी दृष्टि में अवसर विशेष आरम्भ हो जाता है. बाह्य समाज या जगत से जुड़ने पर आपकी प्राइवेसी समाप्त हो जाती है. ऐसे में आपको उन परिधानों को पहनना पड़ेगा जो कार्य एवं अवसरानुसार निर्धारित हैं. स्थान अलग-अलग हो सकते हैं. कार्य एवं अवसर विशेष हेतु परिधान का निर्धारण सामाजिक एवं भौगोलिक परिस्थिति पर आधारित होता है. इसके आलावा परम्पराएं, आर्थिक स्थिति, लोगों की मानसिकता आदि भी इस पर प्रभाव डालते हैं. एक कहावत है 'जैसा देस वैसा भेस' इसमें इसी बात की ओर ओर संकेत है. 

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