भारत एवं श्री लंका के मध्य नासा ने माना कि वहाँ रामसेतु जैसे प्रमाण मिलते हैं .....क्यों नहीं मिलेंगे ..... ?? ......इसके निर्माण का वर्णन तो रामायण में पहले से ही है I.....सवाल नासा का नहीं सवाल हमारा है कि हमने कभी इस पर कोई कल्पना ही नहीं कि रामसेतू उस ज़माने में कैसे बनाया होगा ...किस चीज़ से बनाया होगा आदि आदि ...I...... वाल्मीकि जी लिख गए बस उनके लिखे शब्दों पर हमारी सोच ठहर गयी और उसे पढ़ सुनकर सिर्फ रसास्वादन करते रहते हैं I .....वाल्मीकि जिन पत्थरों को तैरते पत्थर कहते हैं .... हो सकता है.... वे बड़े बड़े विशालकाय समुद्री कछुए (turtles) हों उनको एक जगह इकठ्ठा कर समुद्र में तैरता पुल बना लिया गया हो तथा ....उनकी पीठ पर से गुज़र कर राम सेना श्री लंका पहुँच गयी हो I .......समुद्र मन्थन के समय भगवान विष्णु द्वारा कच्छप अवतार धारण कर मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करने का भी तो वर्णन मिलता है ....तो क्या बड़े बड़े समुद्री कछुए वानरों एवं मानवों का वज़न नहीं उठा सकते ? ........राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, शबरी आदि भले ही आज भौतिक रूप में नहीं हैं परन्तु वे लोगों के दिलों एवं आस्थाओं में तो हैं ...उनके वैज्ञानिक प्रमाणों की क्या ज़रूरत ? .....
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