प्रभु भल कीन्ह
मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर शूद्र
पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी || ====
तुलसीदास जी ने चौपाई में लिखा है -- "ढ़ोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी..... |" फेसबुक पर किसी पोस्ट में इसके अर्थ निकाले जा रहे थे...|
इस चौपाई में विवादित शब्द है 'ताड़ना' | इसे तारण शब्द के रूप में भी देखा गया है | खैर, ....मैं चौपाई को अलग अर्थ के सन्दर्भ में देखता हूँ - इस चौपाई में शब्द 'अधिकारी' को पकड़े रहिएगा |
अधिकारी शब्द का प्रयोग किसी अच्छी एवं
सकारात्मक बात के लिए ही किया जाता है | “यह व्यक्ति इनाम का अधिकारी है” इनाम पाना सकारात्मकता है जबकि “सजा” के सन्दर्भ
में अधिकारी शब्द का प्रयोग गलत है क्योंकि सजा ‘पाने’ की नहीं, ‘देने’ की बात होती है | इसलिए उपर्यक्त चौपाई में अधिकारी
शब्द का प्रयोग किसी अच्छी चीज़ को पाने के लिए ही हुआ है | अब सवाल दो बातों को लेकर है- पहला तुलसीदास जी ने किसे ‘अधिकारी’ माना है ?
दूसरा किस बात के लिए अधिकारी हैं ? चौपाई में ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी इन पाँच को “अधिकारी” माना है | ये पाँचों “सकल ताड़ना” के अधिकारी हैं | शब्द सकल का अर्थ है
‘सम्पूर्ण या एब्सोल्यूट’ | ताड़ना शब्द का अर्थ वैसे ‘पिटाई’ से लिया जाता है परन्तु एक अर्थ और है ‘परखना’ या “भाँपना |”---“वह उसकी नीयत को ताड़ गया' अर्थात वह समझ गया कि उसकी नियत में खोट थी | चूँकि चौपाई में मामला भगवान राम से जुड़ा है इसलिए आध्यात्मिक सन्दर्भ में ताड़ना
का अर्थ देखने- परखने या भाँपने
से ही है न कि पिटाई या दुतकारने से |
....
आइये अब इस निगाह से देखते हैं | तुलसीदास जी के
अनुसार- ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी इन
पाँच को भी किसी बात को परखने, भाँपने या जाँचने का अधिकार है | ये पाँच ही क्यों ? क्योंकि ये पाँचों इस बात की धारणा के अच्छे
उदाहरण हैं कि इन्हें जैसा चाहो वैसा उपयोग कर लो | ये कुछ बोलेंगे
या करेंगे नहीं | ढोल...जैसा बजाओ वैसा
बज जाएगा, गँवार...जैसा समझाओ समझ जाएगा, शूद्र....यानि
सेवक को तो बस स्वामी की आज्ञा का पालन करना है, पशु...बेचारा
जिधर हाँको उधर हंक जाएगा....| अब बात नारी की तो, ‘समर्पण’ के नाम पर नारी का अपना
अलग से कोई अस्तित्व नहीं माना जाता है... वह तो उपभोग्य है | बस ! यहीं पर तुलसीदास जी कहते हैं कि नहीं इन पाँचों को भी सकल यानि एब्सोल्यूट
अधिकार है किसी को परखने का, देखने का,
भांपने का या जाँचने का | अर्थात ये भी “सकल ताड़ना” के अधिकारी
है | आपने जैसा कहा वैसा कर दिया जरूरी नहीं | मेरे लगाए अर्थ के मामले में निम्न दोनों चौपाइयों को सम्मिलित भाव में देखना
होगा-
सभय
सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥।
गगन
समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1॥"
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं । मरजादा पुनि
तुम्हरी कीन्हीं ॥
ढोल
गवाँर शूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी॥“
ये बात भगवान राम के समक्ष समुद्र के द्वारा विनम्रता पूर्वक कही गई है... श्री राम ने समुद्र के घमण्ड को
तोड़ने के लिए कहा कि “हे लक्ष्मण ! भय बिन प्रीति नाहीं, लाओ अग्निबाण से इसे अभी सुखा देता हूँ |”- तब राम को पहचान (परखकर या ताड़ कर) समुद्र डर गया वह राम की शक्ति को जान विनम्र भाव से विनती कर बोला कि- हे प्रभु ! आकाश, पृथ्वी, अग्नि, जल एवं वायु सभी जड़ हैं इनकी करनी भी जड़ है (
इस कारण मेरी करनी भी जड़ है क्योंकि समुद्र भी इन पाँचों तत्वों से बना हुआ है ) मेरे
अवगुणों को क्षमा करें | फिर कहा - हे प्रभु ! आपने अच्छा किया
जो मुझे सीख (फटकार) दी |... ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी को भी आपने परखने या भांपने (ताड़ने)
का सकल अधिकार दे रखा है परन्तु जड़ होने का स्वभाव भी तो आप ही का दिया हुआ है ( इस
कारण मैं आपको पहचान नहीं पाया ) | तात्पर्य ये है कि इन पाँच
तक को किसी बात को ताड़ने का अधिकार है तो मुझे क्यों नहीं ? यहाँ
एक बात उल्लेखनीय है समुद्र ब्राम्हण के रूप में श्री राम के सामने खड़ा है | ब्राम्हण ज्ञान का रूप होता है परन्तु कई बार ज्ञान की पराकाष्ठा से उत्पन्न
जड़ता के कारण ज्ञानी भी साधारण सी बात को ताड़ नहीं सकता है |
इस
चौपाई के अर्थ को इस सन्दर्भ में समुद्र के मनोभाव को समझते हुए देखना होगा न कि केवल
शाब्दिक अर्थ में | इस अर्थ में मुझे तुलसीदास जी की बात दिखाई देती है क्योंकि वे
भी उस समय की सामाजिक परिस्थितियों से आहत रहे होंगे | ये बात
भी तथ्य परख है कि श्री रामचरितमानस की रचना का उद्देश्य ही हिन्दू समाज के उत्थान
के लिए किया गया था | तुलसीदासजी ने जन सामान्य को समझ में आए
ऐसी भाषा एवं शब्दावली में अपनी बात कह दी जिसे आगे चलकर गलत अर्थ में प्रचारित कर दिया | अतः एक
नया अर्थ तथा संदर्भ तलाशने की मैंने कोशिश की है आशा है आप सब भी मेरी बात से सहमत
होंगे | धन्यवाद |
बिलकुल सही व्याख्या है.... यही सोच रही होगी तुलसीदासजी की ....
ReplyDeleteतारणा नहीं ताड़ना शब्द लिखा है तुलसी दास जी नें. अब मुंह छिपाने के लिए इस अनर्थ को अर्थ देने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है. क्लीयर है कि उन्होंने इन चारों को ताड़ना का अधिकारी ही कहा गया है. जिस सन्दर्भ में कहा गया है, उससे भी ताड़ना शब्द ही निहित है जब समुद्र नें रास्ता नहीं दिया तो राम नें कहा था. इसका एक ही मतलब था कि लातों के देव बातों से नहीं मानते
ReplyDeleteताड़ना मतलब परखना
Deleteताड़ना मतलब परखना
Deleteरामायण में इस चौपाई को पढ़िए सिर्फ सुनिए मत सर,इसका अर्थ भी समझ आ जायेगा
Deleteरामायण में इस चौपाई को पढ़िए सिर्फ सुनिए मत सर,इसका अर्थ भी समझ आ जायेगा
DeleteTadana ka pehle artha samajhiye mr.kamal. tab chopai ka arth khud hi samajh jayenge
Deleteतारणा नहीं ताड़ना शब्द लिखा है तुलसी दास जी नें. अब मुंह छिपाने के लिए इस अनर्थ को अर्थ देने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है. क्लीयर है कि उन्होंने इन चारों को ताड़ना का अधिकारी ही कहा गया है. जिस सन्दर्भ में कहा गया है, उससे भी ताड़ना शब्द ही निहित है जब समुद्र नें रास्ता नहीं दिया तो राम नें कहा था. इसका एक ही मतलब था कि लातों के देव बातों से नहीं मानते
ReplyDeleteताड़ना का मतलब to guess bhi hota hai
DeleteRam ji nhi bolte smudra dev bolte hai
Deleteकमल जी इस चौपाई का एक शब्द आप के लिए भी है "गँवार", आपको सही दिशा और ज्ञान की ज़रूरत है।
DeleteHahahha very nice answer... apne aise logo ko sahi jawab dia.. hats off to u
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ReplyDeleteताड़ना का प्रचलित एक और अर्थ भी है जो बुंदेलखंड में अब भी प्रयोग होता है.. निरखना, परखना, राम के क्रोध पर समुद्र के विचार हैं.. की पञ्च तत्व जड़ हैं ... वो सोचने समझने या समझाने के लिए नहीं.. उनको समझने निरखने परखने की जरुरत है, ढोल को बजने के पहले निरखने परखने की जरुरत है .. .नहीं तो सही लय ताल ध्वनी नहीं बनेगी, गंवार (भोला भला, अनभिज्ञ) अनभिज्ञता में सही निर्णय नहीं ले सकता .. उसको निरखने परखने की जरुरत है, शुद्र (सेवक वर्ग, skilled unskilled labor, तुरंत आदेश पर दौड़ने वाला(वैसे शू और द्र से बने इस शब्द का यही मतलब है.. quick response करनेवाला ) ) इनको निरखने परखने की जरुरत है इनकी आवश्कताओं को खुद समझने की जरुरत है ...पशु (अहिंसा परमो धर्मः) प्रताड़ित किये जाने के लिए तो नहीं हैं... उनकी भूख प्यास शारीरिक तकलीफ समझने की जरुरत है निरखने परखने की जरुरत है.. क्योंकि वो बोल नहीं सकते... नारी जो समर्पण त्याग की मूर्ति है जो अपनी आवश्यकताएं खुद संकोचवश नहीं बता पातीं, जो अपने त्वरित बुद्धि से संकट को पुरुषों से ८ गुना पहले ही समझ लेती हैं पर प्रेम वश समर्पण के पश्चात फिर उस तरफ ध्यान भी नहीं देती, कोई उनसे प्रेम से बात कर ले तो उसके प्रति अच्छा सोचने लगती है, जो राष्ट्र की इकाई, परिवार का आधार स्तम्भ है, जो मानसिक रूप से बलवान होने पर भी शाररिक रूप से दुर्बल है ऐसी नारी को सदैव निरखने परखने की जरुरत है ... उसकी रक्षा परिवार का समाज का दायित्व है ये सभी वर्णित सजीव निर्जीव bhali भाँती निरखने परखे जाने के अधिकारी हैं... क्योंकि जो निर्जीव है वो ढोल खुद तो अछे राग रागिनी से बजेगा नहीं ...और जो सजीव हैं ,गंवार, शुद्र पशु और नारी ये हमारी सेवा, पालन पोषण करते हैं इनका ध्यान रखना, इनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना, इनकी सुरक्षा का ध्यान रखना हमारा, समाज का कर्तव्य है... नहीं तो अधर्म, और असंतोष समाज और राष्ट्र की बर्बादी का कारण बन सकते हैं..
ReplyDelete- सुनील दुबे
सुनील दुबे जी आपने राम चरित मानस के इस चोपाई को सही रूप से समझाया है, कुछ लोग तो तुलसी दास जी जैसे विद्धवान को भी कटघरे खड़ा कर दे रहे है,, ताड़ना का मतलब परखना भांपना ही होता है। विनय
Deleteये बिल्कुल सही है।
Deleteअति सुन्दर।रामचरितमानस अवधी में लिखा हुआ है तो अर्थ भी अवधी के अनुसार होगा।
Delete🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Deleteकाश सब इस बात को समझे कि समुंदर ने कहा गगन समीर अनल जल धरनी
ढोल ग्वार शुद्र पशु नारी के साथ इन पांच तत्वों की तरह व्यवहार करना चाहिए
पशु की तरह जल को बांध कर रखना चाहिए
ढ़ोल कब से परखने लगा भाईसाहब.. कुछ भी कर के लीपा पोती करो...
ReplyDeleteढोल में नांद होती है जो गगन से मिलती है
Deleteढोल को जांच परखे बिना कभी नही बजाना चाहिए
वरना बेसुरा बजेगा या फट जायेगा
लीपा पोती नही है ये दिमाग का इलाज करवा
धर्म विरोधी
Murkho SE tark karna bekaar hai pehle ye apne isthar par layge fir dushre ki dimag ki fajiyat kar denge
ReplyDeleteRight
ReplyDeleteतुलसी दास को सही साबित करने की एक नाकाम कोशिश है। तुलसी दास और बाल्मीकि रामायण में कई जगह मतभेद है।
ReplyDeleteतुलसी दास को सही साबित करने की एक नाकाम कोशिश है। तुलसी दास और बाल्मीकि रामायण में कई जगह मतभेद है।
ReplyDeleteDhol ko bajana padta hai pitna padta hai kahi log is ka arth tarna na nikal de isliye tulsidas ne dhol ko equate kiya Gawar, shudra aur stri se....his entire life he wrote in Sanskrit and Tadna is sankrit also search in google it means dand dena. thoda reply karo aur thik se samjhata hu tumko
ReplyDeleteKshatriyo ko bhi tado, vaishyo ko bhi tado, kayastho aur brahmino ko bhi tado ...apni ma ko tado..behan ko tado
ReplyDeleteताड़ना का अर्थ ॒मारना पिटना डाँटना डपटना शुद्रो और नारियों को किसी भगवान ने सम्मान नहीं दिया अगर अम्बेडकर जी ने संविधान नहीं बनाया होता तो शुद्रो और नारियों की क्या स्थिति थी सब लोग जानते हैं । जय भीम
ReplyDeleteBhai hamare dharm granthon me milavat ki gayi he vrna hmari manusmiti se achha samvidhan kahi nhi he Puri duniya me..🕉️
DeleteShudra hai Kya isi ka matlb hi bta do
Delete��
ReplyDelete��
"वसुधैव कुटुम्बकम्" और "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः" का सच
♦
✍��डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा 'अज्ञात'
��
हमारी काफ़ी समय से यह खुली चुनोती रही है कि कोई हिन्दू विद्वान हमें दिखाए कि किस वेद में, किस रामायण-महाभारत में, किस उपनिषद या ब्राह्मणग्रंथ में, किस स्मृति या पुराण में, किस दर्शनग्रंथ या धर्मसूत्र में *'वसुधैव कुटुम्बकम्'* लिखा है। कई दशक हो गए, आज तक कोई माई का लाल ये शब्द किसी वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, स्मृति, पुराण, दर्शन या धर्मसूत्र में नहीं दिखा पाया है। कोई कभी दिखा भी नही सकता; क्योंकि ये शब्द उनमें से किसी ग्रंथ के हैं ही नहीं; क्योंकि *ये शब्द तो जातिवादी हिन्दू धर्म के लिए विष के समान प्राण हरने वाले हैं।* जो लोग अपने को अपने पड़ोसी से ऊँचा मानते हों, जो अपने ही धर्म के और अपने ही गाँव या शहर के लोगों को 'अछूत' समझकर उन्हें छूने तो क्या देखने तक में (अपने) धर्म से पतित हो जाना, या धर्म भ्रष्ट हो जाना मानते हों, वे दूसरे धर्म के 'यवनों', 'म्लेच्छों' आदि को अपने परिवार का सदस्य कैसे मान सकते हैं?
संस्कृत में 'यवन' विदेशी को कहते हैं।
*'वसुधैव कुटुम्बकम्' किसी हिन्दू धर्मग्रंथ में नही, 'हितोपदेश' नाम की पशु-पक्षियों की कहानियों की पुस्तक में आता है, जो पंचतंत्र की तर्ज़ पर लिखी गयी है। वहाँ एक जानवर दूसरे जानवर से, न कि कोई गुरु या धर्मगुरु का कोई धर्मग्रंथ किसी हिन्दू से कहता है-*
*अयं निजः परो वेति गणनालघुचेतसाम्।*
*उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।*
��हितोपदेश,1/70
����अर्थ: 'यह' मेरा है, यह 'तेरा' है, ऐसा तो छोटे दिल वाले लोग कहा करते हैं; परन्तु खुले दिल वाले लोग तो सारी धरती को अपना ही परिवार समझते हैं अर्थात तेरे-मेरे का भेदभाव नहीं करते।
यहाँ कई बातें स्पष्ट हो जाती हैं। एक तो यह धर्मग्रंथ का आदेश नहीं, हिन्दू धर्म का कोई हिस्सा नहीं। दूसरे, यह कथन पशु-पक्षियों की कहानी में आता है, इंसानों के किसी प्रवचन में नहीं। तीसरे, यह आदेश नहीं, बयान है और इसमें केवल तंगदिल और खुले दिल लोगों का अन्तर स्पष्ट किया गया है, न कि मानवीय समानता का प्रतिपादन। अतः इस वाक्य से न हिन्दू धर्म की महानता सिद्ध होती है, न हिन्दू धर्मग्रंथों की। इससे यह भी किसी तरह सिद्ध नहीं होता कि हिन्दू धर्म मानवीय समानता में विश्वास करता है तथा यह ईसाई और इस्लाम धर्मों की तरह अपने सब अनुयायियों को एकसमान मानता है। अतः 'वसुधैव कुटुम्बकम्' ब्रह्मास्त्र नहीं, एक गीला पटाख़ा है जो चल नही सकता।
इसी तरह का एक गीला पटाख़ा और है, जिसे जातिवादी लोग पेश किया करते हैं। वह है यह श्लोक:
����
*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु निरामयाः।*
*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभागभवेत।*
����अर्थ: सब सुखी हों; सब निरोग हों; सब सुख देखें और कोई दुखी न हो।
इस श्लोक को हिन्दू धर्म के मानवतावाद के प्रमाण-पत्र के तौर पर पेश किया जाता है और इससे जातिवाद के अत्याचारी एवं अमानवीय स्वरूप पर पर्दा डालने का प्रयत्न किया जाता है।
यह श्लोक ज़्यादा पुराना नहीं है, क्योंकि यह न वेदों में मिलता है, न उपनिषदों में; यह न गीता में मिलता है, न अन्य किसी प्रामाणिक ग्रंथ में। यह बहुत बाद का है।
♨
कुटुंबकम महा उपनिषद में है कृपया देख जान कर कमेंट करे एंड सर्वे सुखी वाला अथर्व वेद का शांति पाठ है कमेंट जान समज कर कीजिये
Delete
ReplyDelete*धर्म के नाम पर हिंसा की शिक्षा आतंकवाद नहीं है?*
*अहिंसा परमो धर्म या कुछ और?*
📚
भारत में महाभारत का एक श्लोक अधूरा पढाया जाता है .....क्यों ??
"अहिंसा परमो धर्मः"
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है:-
"अहिंसा परमो धर्मः,
*धर्महिंसा तदैव च।*
अर्थात- अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है
और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है.....
इस समय देश और प्रदेश की सरकार पूर्ण धार्मिक प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है। धर्मगुरु सत्ता चला रहे हैं और चूँकि धर्म, लोकतंत्र, मानवतंत्र, और प्रजातंत्र से ज़्यादा खुद की सुरक्षा में विश्वास करता है और इसके लिए धार्मिक ग्रंथों ने हिंसा को उचित ठहराया है तो अहिंसा की अवधारणा लोकतंत्र वापिस आने तक अपनी सुरक्षा स्वयं करे!
*"अगर हिन्दू राज हक़ीक़त बनता है तो वह इस देश के लिए सबसे बड़ा ख़तरा होगा। हिन्दू कुछ भी कहते रहें, वास्तव में इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता। हिन्दूवाद स्वतंत्रता के लिए, समता के लिए और भाईचारे के लिए ख़तरा है। इस तरह यह जनतंत्र का दुश्मन है। हमें हिन्दू राज को हक़ीक़त बनने से रोकने के लिए अपनी पूरी-पूरी कौशिश करनी चाहिए।"*
💫
✍🏻बाबा साहिब डॉ. भीम राव अंबेडकर*
*📚Pakistan or Partition of India, Page-358📖
धर्म का मतलब सत्य और भाई साहब जब चारो तरफ शिकारी हो और बीच मे हिरण हो तब हिरण ये सोच के की में अपनी आँखें बंद कर लू और वो लोग उसे नही देखेगे वैसा ही होगा एंड जरूरी नही की अम्बेडकर हर बात में सही ही हो महाभारत वाला ही पूर्ण सत्य है
Deleteमहाभारत में सही कहा गया है, धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना पाप नही महा पुन्य का काम है।
ReplyDeleteये जो श्लोक है वो महाभारत के समय का है जो कि करीब 5 हजार साळ पुरानी घटना है।तब और कोई धर्म नही था इस दुनिया मे।
जब धर्म की हानि करने का मतलब पाप,अत्याचार,दुष्कर्म करना था ना कि किसी और धर्म को नीचा दिखाना या जबरदस्ती दूसरे देशों में जा कर धर्म प्रचार करना, ना ही इसका मतलब धर्म के नाम पर देह में बम्ब लगा कर किसी नारे विशेष के साथ फटना
koi nahi janta ki tulshi das jii ka ashya kya tha . Har koi apni bat hii sahi kahta hai. har ek sahi hai Gyani hai.
ReplyDeleteकितनी अशोभनीय टिप्पणी की है आपने,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी से आपकी मानसिकता का परिचय दिया है। जिस देश में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है , उस देश के एक ऋषी पर आप बहुत ही अशोभनीय इल्जाम लगा रहे है।
स्त्रियों की इज्जत किया करो जिससे आपकी बेटी, बहू, मां, और समस्त लोग आपकी इज्जत कर सके।
ताड़ना का यहां प्रयोग खिंचाई करने से ही है यानि ढोल की रस्सियों को खींचने से ढोल सही बजेगा। इसी तरह नासमझ, सेवक, पशु, नारी की खिंचाई यानि सख्ती से पेश आने से हैं।
ReplyDeleteताड़ना शब्द से अर्थ है कि देख रेख करना, केयर करना , शिक्षा देना,मारना पीटना नहीं ना की परखना, मूर्खो ने अर्थ का अनर्थ कर डाला, यानि इन पाचो को सम्पूर्ण देखभाल का अधिकारी माना गया है। देख तो रहे हो आज हमारी बहन बेटियो के साथ क्या हो रहा है। इसलिए आदेश है एक कन्या को बचपन में पिता के साथ जवानी में पति के साथ, और बुढ़ापे में पुत्रो के साथ रहना चाहिए। अकेले उसका सोषण हो सकता है। क्योंकि इस्त्री को शास्त्रों में कहा गया है। उसमे आकर्षण का गुण है। इसलिए महिलाएं इसे अपना अपमान ना समझे। बल्कि सतर्क रहे कामरूपी दैत्यों से जो घात लगाए बैठे हैं।
ReplyDeleteयहां सास्त्रो में इस्त्री को रत्न कहा गया है
Deleteअनावश्यक रूप से एक शब्द के भांति-भांति के अर्थ निकालने का प्रयास न करें और ना ही उसे डुबोकर पेश करने का प्रयास करें। जनता बेवकूफ नहीं है। जिस संदर्भ में प्रयोग किया गया है, अर्थ स्पष्ट है।
ReplyDelete*चाशनी में
ReplyDeleteताड़ना का अर्थ हमारे कई विद्वान भाईयो ने अपने अपने तरीके से लगाए हैं । मैं किसी अर्थ को गलत कहने का अधिकार नहीं रखता । लेकिन निवेदन कर सकता हूं ।तुलसीदास जी को समझने केलिए रामचरितमानस को पूरा पढ़ें । मैं अपने विचार रख रहा हूं ।ढोल, गंवार शूद्र, पशु नारी ।५ नहीं ३ का ही उल्लेख किया है । दूसरी चौपाई- सेवक सठ नृप कृपन कुनारी । कपटी मित्र सूल सम चारी ।।यहां यदि ४ संख्या नहीं लिखते तो इसमें और ज्यादा विवाद होता ।(सेवक सठ-गवार सुद्र, कुनारी- पशु नारी) इस प्रकार दोनों चौपाइयों के अर्थ समान ही है।ढोल को गंवार शूद्र को पशु ब्रत्ती की नारी के प्रति लिखा गया है ।
Deleteमूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र- ये चारों शूल के समान पीड़ा देने वाले हैं। हे सखा! मेरे बल पर अब तुम चिंता छोड़ दो। मैं सब प्रकार से तुम्हारे काम आऊँगा (तुम्हारी सहायता करूँगा)॥5॥
DeleteShudra Sevako ko bola jata hai
सिर्फ लीपापोती के अलावा कुछ नहीं है आज के समय सब पढे लिखे है आपकी तररह बेवकूफ़ नही जो ताडना का मतलव ना समझे।।
ReplyDeleteताडना परखना यानि परखते रहो ढोल बजेगा क्या बेवकूफी कु भी हद होती है
बिल्कुल सही कहा आपने
Deleteडैमेज कंट्रोल मत करो । पाखंड और पाखंडियो की वजह से ही इस देश मे इतनी असमानता और असमता है ।,थू है ऐसे पाखंडी किताबो पर
ReplyDeleteThis is right coment.
DeleteMurkho ko samjhana bahut muskil kam h
DeleteTulsidas NE chaupayi Hindi me NHi awadhi bhasha me likhi hai
Bandhuvo shabdo ke arth nahi hote agr shabdo me arth hote bhasha ki samasya na hoti
ReplyDeleteSamajh ke bina shabd arth nahi jaan sakte
Kisi bhi shabd ko shabd kosh me dekhane par ek shabd ke kai prayog kai arth hote hai
Tab hume bhavarth samajhane ki jarurat hoti hai
Because manas ho Gita ho ya valmiki Ramayan ho inki rachana Geet ya kavita kavya rachana hai
Puri chopai par vichar karne se tadana ka bhavarth spasht hota hai
Fir bhi samajh na aaye to pure samvad aur ghatanakram par drashti dali jaye
Bhavana hi galat ho to bhavarth bhi galat nikalega
Vese bhi yah chipai sandarbh se mach nahi karti
Samudra esa kyu kahata hai
Samudra dhol nahi gavar bhi nahi shudra bhi nahi nari bhi nahi
Ya to ye chopai jativadi logo dvara vidvesh purvak jodi gai hai
Aur agr original hai to Ram aur samudra devata ke samvad aur vritant anuroop TaaDana ka arth sikh shiksha dene se hai
Aavedan nivedan prativedan prarthana purvak yachana karne par bhi jadata se apne hat par ada rahe samudra ki bhati tab us ko bhaya dikana sahi marg par lane karya sadhane hetu
Yaha par Ram ne samudra ko mara pita hota to hum man lete dadana ka arth marna pitana hai
Dhol ko hi lijiye uchit tarha se thapaki dene se karya sadhega dhol sangit ki sadhya hoga
Durbhavna purvak pitane ke kya dhol se koi sangit bajega ? 🤔
Tulsidas ji NE awadhi bhasha me likhi hai chaupayi Koi awadhi me inse bat kare to inko kuch palle hi na padega
Deleteजो आपने बताया सत्य है।
ReplyDeleteप्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं।
ReplyDeleteमरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु , नारी ।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी.. और, सही रास्ता दिखाया ….. किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है…!
क्योंकि…. ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री…….. ये सब शिक्षा तथा सही ज्ञान के अधिकारी हैं ॥3॥
अर्थात…. ढोल (एक साज), गंवार(मूर्ख), शूद्र (कर्मचारी), पशु (चाहे जंगली हो या पालतू) और नारी (स्त्री/पत्नी), इन सब को साधना अथवा सिखाना पड़ता है.. और निर्देशित करना पड़ता है…. तथा विशेष ध्यान रखना पड़ता है ॥
इसका सीधा सा भावार्थ यह है कि….. ढोल, गंवार, शूद्र, पशु …. और नारी…. के व्यवहार को ठीक से समझना चाहिए …. और उनके किसी भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए….!
Ye sab false h .
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