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Friday, May 3, 2013

खेत मेरा दाने मेरे, पंछी चुगे तुम्हारे और मैं बजाऊं तालियाँ......


         हम और हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है किसी को कोई पता नहीं । पवन बंसल साहब के भांजे ने रिश्वत खोरी में मील का एक पत्थर और गाड़ दिया। वैसे मील तो बहुत बड़ी दूरी होती है यहाँ तो हर इन्च पर आपको एक नहीं कई पत्थर गड़े मिलेंगे। खैर, हम गलत बातों, चीज़ों जो भी कहो, को सर माथे क्यों चढ़ा लेते हैं। थोड़ा तो दिमाग से काम लो भाई ! कम से कम ये तो सोचो कि जिसे आपने माथे चढ़ाया है उससे आपको क्या मिल रहा है। अब आई. पी. एल. को लीजिये। टीवी पर विज्ञापन आया "राजस्थान रॉयल्स आज भिड़ेंगे ......," भिड़ेंगे तो भिड़ेंगे मुझे क्या मिलेगा ? एक समय था जब क्रिकेट के "भगवान" भारत की तरफ से खेलते थे तो हम भी देखते थे; उसमें कम से ये तो तसल्ली थी कि "भगवान" ऐसे देश की और से खेल रहे है जो "मेरा" है। अब यहाँ आई. पी. एल. में तो "मेरा" तो कुछ भी नहीं है। खेत मेरा दाने मेरे, पंछी चुगे तुम्हारे और मैं बजाऊं तालियाँ। एडा समझा है क्या ? हमारी युवा पीढ़ी पहले ही से तो दिशा विहीन है ऊपर से मोबाइल नाम का एक एक लोलीपॉप उनके हाथ में पकड़ा दिया। जिन्हें डॉक्टर इंजिनियर बनना था वे तो बन गए पर करोड़ों माता-पिता अपने बच्चों के हाथ में लोलीपॉप पकड़ा परेशान हैं उसका क्या ? मेरे मित्र के साथ मैं एक मेले में घूम रहा था। पूरे समय मित्र का बालक सर झुकाए अपने दोनों हाथो से मोबाईल चलाते हमारे पीछे पीछे चलता रहा। अंत में मैंने बालक से पूछा -"बेटे तुम्हे इस मोबाईल क्या मज़ा आता है ?" बालक बोला "अंकल आपके मेले में उतना मज़ा नहीं आता जितना मज़ा इसमें आता है।" हमने तो मज़े के मायने ही बदल डाले हैं। अब देखिये ना ! हमने जिसे सदी का महानायक बना सर माथे चढ़ाया उसने पहले तो हमारे बच्चो को "बस पाँच रुपये में" मेगी खिलाना सिखलाया, आजकल वे इस बुढापे में अपनी साइज़ बता कर बडे पैकेट से पेट भरना सिखला रहे हैं। अरे भाई ! आपके तो बुढ़ापे की भी कीमत है, पर हमारे बच्चों को क्यों मेगी की आदत पटक रहे हो। हमारे बुढ़ापे में हम रोटी के बजाय क्या मेगी खा के पेट भरेंगे ? धन्यवाद।    

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