
मुझे नहीं जरुरत जानने की कि तुम कौन हो,
जिस भेस को बदलकर तुम आये हो,
ये उसी सामान का बना है जिसे तुम
पिछली बार मुझसे लूट कर गए थे।
लूटना तुम्हारी आदत है,
अब सियासतदानों का रूप धरे हो,
थोड़ी गरीबी बची है मेरे पास, रहने दो उसे,
मुझे भी मेरे मुल्क़ को कुछ देना है।
-प्रियदर्शन शास्त्री
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