बुजुर्गों का नाम आते ही एक छवि सामने उभर कर आती है मजबूत शरीर, ओज से भरा चेहरा, स्वाभिमानी व्यक्तित्व बदन पर धोती ऊपर अचकन या कोट, सर पर पगड़ी, टोपी अथवा साफा, कड़कती आवाज़, अनुभवों से भरा जीवन, सुनाने के लिए देश की आजादी की लड़ाई के गरिमा पूर्ण किस्से एवं क़दमों की आवाज़ के साथ कदम ताल मिलाती हाथों की लाठी ......ठक ठक ठक। भाई हमने तो हमारे दादा नाना को कुछ इस प्रकार ही देखा है। अब सवाल ये है कि क्या आने वाली पीढ़ी ऐसे बुजुर्गों को देख पाएगी ?
हमारी आने वाली पीढ़ी को जो बुजुर्ग मिलेंगे वे कुछ इस प्रकार होंगें- खांसते- खँखारते खाट पर पड़े, सर पर शीत से बचने के लिए मफलर लपेटा हुआ, परतंत्रता का अहसास, बदन पर शर्ट नीचे जीन्स या चड्डा, मरी मरी आवाज़, दूसरों के कन्धों के सहारे चलते, अनुभव के नाम पर कुछ भी नहीं केवल कंप्यूटर/लेपटोप चलाने का ज्ञान, सुनाने के लिए गैंग रेप, लूट, हत्या एवं महंगाई के किस्से।
मित्रों ! मेरी बात अजीब जरुर है जरा गौर करियेगा क्योंकि पुरानी पीढ़ी जिसे आज हम देख रहे हैं उनकी रगों में शुद्ध देसी घी, दूध एवं दही आज भी मौजूद है। दहाड़ते शास्त्रीय संगीत को उन्होंने सुना है। हाथ हल उठाने से मजबूत बने हैं न की जिम जाकर। कई किलोमीटर वे पैदल खेतों पर जाने के लिए चलते थे न की मोर्निंग वाक के लिए। आज की मेगी खाने वाली, एफ डी आई का बेचा अनाज खाई हुई, अंग्रेजी माध्यम में पढ़ी तथा पाश्चात्य संगीत से प्रेरित मिमियाते गानों पर थिरकती पीढ़ी बुढ़ापे में काँपेगी नहीं तो क्या करेगी ? धन्यवाद ।
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