दिल्ली की मुख्यमंत्री साहिबा का कहना है कि 600 रुपये में पाँच लोगों के परिवार के लिए महीने भर का राशन जिसमें दाल, चावल, आटा शक्कर आदि आराम से ख़रीदा जा सकता है। मुझे ऐसा लगता है शीला जी एक शून्य लगाना शायद भूल गई हैं। खैर सवाल यहाँ शीला जी के बयान के बजाय 600/- में क्या क्या ख़रीदा जा सकता है पूरे महीने भर के लिए, सोचने का है। वैसे एक जमाना था जब भोजन में लड्डू खाने की होड़ लगती थी। अब तो लोगों की क्षमताएँ ही घट गई हैं। हद से हद आदमी दो लड्डूओं से ज्यादा नहीं खा सकता। इसी बात को ध्यान में रखते हुए बाज़ार में "बस दो रूपये के दो लड्डू" उपलब्ध हैं। अतः 600/- के बजट में अफोर्डेबल हैं। ये तो हो गया आपके लिए "कुछ मीठा हो जाए" का इन्तजाम। अब सोचना है मुख्य भोजन के बारे में। इधर बच्चन साहब "बस पाँच रुपये की मेगी" से लाखन सिंह जैसे विशाल आदमी तक का पेट भर देते हैं तो एक मेगी के पैकेट में तो तीन तीन बच्चों का पेट तो आराम से भर सकता है। तीन बच्चे इसलिए कि पांच सदस्यीय परिवार में पति-पत्नी के बाद तीन की संख्या ही शेष रहती है। मिठाई भी हो गई, बच्चों का पेट भी भर गया। अब रहा सवाल पिता का, पिता तो दिन में नौकरी-चाकरी के चक्कर में घर से बाहर ही रहता है तो बाहर ही कहीं जुगाड़ कर लेगा। बची माँ, हमारी संस्कृति में तो माताएं परिवार की सुख-समृद्धि के लिए आए दिन व्रतोपवास करती रहती हैं इसलिए माताओं के भोजन का तो कोई लफड़ा ही नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री साहिबा ने जो कहा है वो एकदम सोच समझ कर ही कहा है बल्कि मुझे तो अब ये अहसास हो रहा है कि 600/- में कहीं एक शून्य गलती से ज्यादा तो नहीं लग गया ? धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment