किराना व्यवसाय में विदेशी निवेश को सरकार ने आख़िरकर मंज़ूरी दे ही दी | बहाना वही बीचोलिए कम होंगे, इससे महँगाई कम होगी, लोगों को सस्ते दामों पर वस्तुएँ उपलब्ध होंगी, करीब डेढ़ करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा आदि । खैर, अब डर लगने लगा है कि कुछ लिखते हुए कहीं क़लम न बहक जाए | पिछले ६५ सालों में राज चलाकर सत्ता में बैठे लोग महँगाई को तो रोक न सके अब ये ही एक उपाय रह गया है कि हमारे ही खेत में, अपने ही किसानों द्वारा उगाए गए आलू, टमाटर, भिंडी, गेहूँ, दाल, चावल आदि पहले किसी विदेशी के हाथ में दे दो फिर सबके सब कटोरा लेकर इस उम्मीद में उसके आगे खड़े हो जाओ कि कब उसकी मेहरबानी हो और कब वह हमें सस्ते की भीख दे दे, और ऐसे में उसने यदि हमें चौगुने दाम पर कोई वास्तु दे दी तो हम में इतनी भी हिम्मत नहीं होगी कि उससे जाकर पूछें कि इतनी महँगी क्यों दी है? जिससे आप पूछेंगे उसके आका तो कहीं इंग्लेंड-अमेरिका में बैठे होंगे | तब कौन जवाबदेह होगा |
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किराणा सामान |
५१ फीसदी विदेशी निवेश को सरकार ने मंज़ूरी दी है, ये कभी सोचा है, उनका ५१ फीसदी हमारे २०० फीसदी या उससे भी ज़्यादा, के बराबर होता है | समझ में नहीं आता सरकार एक तरफ डीज़ल, पेट्रोल एवम् गेस के दाम बढ़ा रही है। इस वजह से बढ़ने वाली महँगाई तो दिखाई नहीं दे रही है और बात की जा रही है हमारी उपज को विदेशियों के हाथ सुपुर्द कर सस्ताई लाने की | डर है कहीं हमारी क़लम न फिसल जाए ! हमारे संविधान में Right to life आम जन का मौलिक अधिकार है, एक तरफ अनाज महँगा, दूसरी तरफ खाना पकाने के संसाधन महँगे करके सरकार ने आम जन के जीने को दूभर कर दिया है | इस प्रकार सीधे सीधे संविधान के मौलिक अधिकार पर सरकार चोट कर रही है | बात हो रही है डेढ़ करोड़ लोगों के रोजगार की, देश में करोड़ों छोटे दुकानदार बेरोजगार हो जाएँगे वो सरकार को दिखाई नहीं देते । खैर जाने दो मेरी क़लम कहीं फिसल जाएगी।
जिस प्रकार देश में अरबों रुपये के घोटाले हो रहे हैं उससे देश में आज आर्थिक इमरजेंसी (संविधान में तीन प्रकार की इमरजेंसी दी गई है-राष्ट्रीय आपात अनु -352, संवैधानिक आपात अनु-356, एवं वित्तीय आपात अनु -360) के हालात पैदा हो गए हैं | ऐसे में विकास दर के घटने एवं बढ़ने की बात प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिह के मुंह से निकलना बेमानी लगती है । खैर अब सवाल ये है कि क्या ये दिन दिखाने के लिए इन लोगों को कुर्सी पर बिठाया गया था ? अब तो शायद उनको भी शर्म आ रही होगी जिन्होंने इन्हें वोट दिया था। अब उन लोगों के लिए भी ये वक्त आ गया है कि फिर से मनन करें कि ऐसी गलती दुबारा न हो। अगर सत्ता में बैठे लोगों से स्थिति नियंत्रण में नहीं आ रही थी तो सत्ता से उतर कर दूसरों को मौका दे देना चाहिए था, इसका मतलब ये तो नहीं था कि अपना घर ही परायों को ही गिरवी कर दो | इतिहास देखोगे तो पता चलेगा कि हमारा देश कोई दो-एक दिन में अँग्रेज़ों का गुलाम नहीं हो गया था, पूरे तीन सौ साल लग गए थे | कब गुलाम हो गए मालूम ही नहीं पड़ा। आरंभ में सन 1605 में केवल एक ही अंग्रेज (Sir Thomas Roe) हमारे देश में आया था जिसने सर्वप्रथम अपनी कंपनी ईस्ट इण्डिया कंपनी के लिए सूरत शहर में जगह मांगी थी साथ में कंपनी का कानून लागू करने का पूर्ण अधिकार माँगा था। तब शायद मुगल शासक (Mughal Emperor Nuruddin Salim Jahangir 1605) ने ये नहीं सोचा होगा कि इसी छोटी सी जगह एवं अधिकार से गुलामियत की खाज पूरे राष्ट्र में फ़ैल जाएगी |
आज आवश्यकता है, और अधिक स्थिति ख़राब हो उससे पहले, उन लोगों को बदल देने की, जो देश को गलत दिशा में ले जाने के लिए जिम्मेदार हैं वरना आने वाले समय में हमारे देश में भी पाकिस्तान की तरह गेहूं का आटा पचास-साठ रुपये किलो बिकता नजर आएगा और हम लाखनसिंह की तरह किसी स्कीम में आए "बस पाँच" रुपये की मेगी से पेट भरते दिखेंगे । धन्यवाद ।- Priyadarshan Shastri
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