प्रिय मित्रों,
बच्चे रोजाना स्कूल जाते हैं | अक्सर देखने में आता है कि बच्चे व्यवस्थित तैयार होने में लापरवाही करते हैं विशेषकर जूते साफ करने में | बच्चों का तर्क होता है कि स्कूल के लिए ही तो तैयार होना पड़ता है हम हमारे लिए थोड़े ही तैयार हो रहे हैं | यह भावना सिर्फ़ बच्चों में ही नहीं आम तौर पर बड़ों में भी देखने को मिलती है | हम लोग किसी भी कार्य को अपना नहीं मानते | एक वाक्य हमारी ज़ुबान पर हमेशा होता है, "अरे हम हमारे लिए थोड़े ही कर रहे हैं" या "अरे भाई उन्होंने तो अपनी सात पुश्तों तक के लिया कमा लिया है |" इस प्रकार की सोच किसी भी कार्य के करने में अलगाव की भावना उत्पन्न करती है | ऐसे में आप हो सकता है कार्य को ग़लत तरीक़े से करने में भी न हिचकिचाएँ | एक सज्जन ने येनकेन प्रकार से एक बड़ा सा मकान बना लिया हमने उनसे कहा कि भाई आपको इतने बड़े मकान की क्या ज़रूरत, उनका जवाब था "अपने को कौनसा रहना है सब बच्चों के लिए है |" हमने सोचा की ये जनाब ही सब कुछ कर जाएँगे तो इनके बच्चे क्या फ्री में बैठ कर खाएँगे | मेरे कहने का ये कतई अर्थ नहीं है की आप अपने बच्चों के लिए कुछ न करें | मेरे कहने का मतलब साफ है कि आप कैसा भी कार्य करें चाहे वो दूसरों के लिए हो, उसे अपना समझ कर करें तथा उसके परिणाम से यदि अन्य को लाभ मिले तो सोने पे सुहागा होगा | धन्यवाद |
- प्रियदर्शन शास्त्री
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