जब भी मैने समाचारों के लिए किसी न्यूज़ चैनल को चलाया वहाँ मुझे ५-१० मिनिट तक तो विज्ञापनों को झेलना पड़ा है। अब आज की ही बात लो तो जो चैनल्स कल तक दिल्ली गैंग रेप पर भृकुटी ताने बयान बाजी कर रहे थे वे आज गुजरात एवम् हिमाचल के चुनाव परिणाम बताने में जम्पिंग जेक़ बने हुए है टीवी पर ऐसा लग रहा है जैसे आज से पहले, कल दिल्ली में कुछ हुआ ही नहीं है। मीडिया जिस प्रकार से अपने हावभाव बदल कर घटनाओं का जो परदे पर प्रदर्शन करता है वह निहायत ही असन्तुलित है। कल की घटना को भूल अभी की घटना पर रुख़ कर लेना ठीक है पर बीती को एकदम बिसार देना कहाँ तक सही है ? अब तो ये लग रहा है कि ये मीडिया घटनाएं बेचने वाला न बन जाए ! तब और भी ख़राब हालत देशवासियों को भुगतने पड़ेंगे। धन्यवाद।
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